UCC UNIfrom CIVIL CODE यूनियन सिविल कोड, सरल भाषा में समझिए यह देश और समाज के लिए कितना जरूरी है

समान नागरिक संहिता

एक देश एक नागरिकता नियम……

समान नागरिक संहिता एक देश एक नियम के अनुरूप है, जिसे सभी धार्मिक समुदायों पर लागू किया जाना है। ‘समान नागरिक संहिता’ शब्द का भारतीय संविधान के भाग 4, अनुच्छेद 44 में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है। अनुच्छेद 44 कहता है, “राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।”

भारत में समान नागरिक संहिता हाल ही में व्यापक रूप से बहस का विषय है क्योंकि राष्ट्रीय एकता और लैंगिक न्याय, समानता और महिलाओं की गरिमा को बढ़ावा देने के लिए यूसीसी बनाने की मांग के लिए 2019 में पहली याचिका दायर की गई थी।

क्या है समान नागरिकता संहिता….

समान नागरिकता संहिता एक ऐसा कानून है जो देश के प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार प्रदान करता है, जो कि सभी जाति/धर्म/समुदाय/लिंग से पृथक एक देश एक नियम की अवधारणा लेकर देश में लागू करने का प्रयास किया जा रहा है, जिसके बाद देश के सभी नागरिकों को भाषा/जातियों या अन्य किसी श्रेणी में न बांटकर सभी देशवासियों को बराबर का अधिकार मिलेगा, सभी को बराबर संवैधानिक अधिकार प्राप्त होगा

UCC का इतिहास

सन 1865 में ब्रिटिश सरकार ने अपनी एक रिपोर्ट बनाई जिसमें सभी अपराधियों, सबूतों और अन्य न्यायिक प्रकरणों में समान सुनवाई के लिए एक प्रकार पर जोर दिया जिससे सभी के साथ समान रूप से न्याय किया जा सके |

जबकि 1840 में एक रिपोर्ट के मुताबिक इसमें यह जोर दिया गया था कि हिन्दुओं और मुस्लिमों को इससे दूर रखा जाए, बाकी अन्य सभी जातियों/समुदायों पर एक समान एकरूप से कानून लागू हो

UCC क्यों जरूरी है

हमारा देश आदिकाल से ही विविध प्रकार के संस्कृतिओं और समाजिक रुढ़िवादी प्रवृत्ति का रहा है, आजादी के बाद देश का बंटवारा हुआ जो कि धार्मिक रुप के आधार पर हुआ उसके बाद भी बहुत से जाति/धर्म/समुदाय के लोग यहां पर रह रहे हैं, राजनैतिक रूप से भी लोगों को अपने अपने सहुलियत के हिसाब से जाति/धर्म/समुदाय में बांट कर आज तक किसी जाति विशेष को तुष्टिकरण या अधिक मात्रा में अधिकार या शासकीय योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है, जो कि समान नागरिकता संहिता आने के बाद यह समाप्त हो जाएगा |

हमारे देश में कहने को तो एक संविधान है लेकिन उसमें भी जाति धर्म के नाम पर कई तरह के विवाह विधि है जिसमें किसी में महिलाओं को बराबर अधिकार दिया गया है जबकि किसी में महिलाओं के जीवन को विवाह उपरांत जीवन दूभर कर दिया जाता है|

जिससे इस देश का सामाजिक शशक्तिकरण या कहे सामाजिक समरसता पूरी तरह से बिगड़ा हुआ है, जो लोग अपनी सहुलियत के हिसाब से तत्थो और तंत्रों का गलत तरीके से उपयोग में लाते हैं, इसके लिए भी समान नागरिकता संहिता आवश्यकता है|

UCC आने से क्या फर्क पड़ेगा

समान नागरिकता संहिता आने से उन महिलाओं को सबसे अधिक फर्क पड़ेगा जो मुस्लिम समुदाय से हैं जिन्हें कभी भी बेबक्त हमेशा डर रहता है कि कब उनके शौहर उन्हें तलाक़ तलाक़ तलाक़ बोलकर उनकी हंसती खेलती हुई ज़िन्दगी को पल भर में खत्म कर दे और वे उनके खिलाफ कुछ नहीं कर पाते हैं, समान नागरिकता संहिता के आ जाने से उन्हें भी अपने हक के लिए लड़ने के अधिकारी हो जाएगी और वह भी अपने अधिकार के लिए कोर्ट के दरवाजे तक जा सकती है

क्या आजादी के बाद भी UCC कभी चर्चा में आया

जी हा जरुर! आजादी के बाद भी यह विषय चर्चा में आया लेकिन इसको लेकर शुरू से ही लोग दो धड़ों में बंटे हुए दिखे

जिसमें एक गुट इस पक्ष में था कि इस देश में जहां हजारों प्रकार के संस्कृतिओं से संबंध रखने लोग हैं जो तरह-तरह के धर्मों में मान्यताएं रखते हैं उस सभी को एक धागे में पिरोना बहुत ही मुश्किल काम होगा, सभी लोग इसके तैयार नहीं होंगे, और जातिगत हिंसा बढ़ सकती है, जिससे देश की एकता और अखंडता में बांधा हो सकता है|

कुछ लोग यह मानते थे कि यह देश को एकजुट करने करने का बहुत अच्छा विकल्प हो सकता है,

लेकिन इस पर न तो संसद में कभी चर्चा हुआ न ही इस पर कोई चर्चा करने की कोशिश की

फिर से कब और किसने इस पर चर्चा शुरू किया

यू तो समय समय पर इस पर लोग बात करते रहे और इस पर विचार विमर्श भी करते रहे लेकिन यह बड़ी चर्चा में तब आया जब 2019 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी में इस मुद्दे को अपने प्राथमिक एजेंडा में लाया और घोषणा पत्र में भी समान नागरिकता संहिता लागू करने की बात रखीं|

देश के महा-पुरूषों का इस पर क्या विचार रहा

“समान नागरिक संहिता के बारे में कुछ भी नया नहीं है। विवाह, विरासत के क्षेत्रों को छोड़कर देश में पहले से ही एक समान नागरिक संहिता मौजूद है, जो संविधान के मसौदे में समान नागरिक संहिता के मुख्य लक्ष्य हैं। यूसीसी भी वैकल्पिक होना चाहिए।” – Dr. BR AMBEDKAR


“मुझे नहीं लगता कि वर्तमान समय में भारत में मेरे लिए इसे आगे बढ़ाने का प्रयास करने का समय आ गया है।” – Pt. Jawahar Lal Nehru

सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में मतदान हुआ और 5:4 के अनुपात में बहुमत मिला जिसके परिमाणस्वरूप मौलिक अधिकारों पर उप-समिति ने निर्णय लिया कि समान नागरिक संहिता को मौलिक अधिकार के रूप में शामिल नहीं किया जाएगा।

UCC का विरोध क्योंदेश में बहुत से जगह पर समान नागरिकता संहिता का विरोध हो रहा है, कई राजनीतिक पंडितों का मानना इसके बाद लोगों के हिन्दुओं के रीति-रिवाज के अनुसार उस सभी पर कानून लागू कर दिया जाएगा, जिससे उनकी अधिकार छीन लिया जाएगा

एक समान नागरिक संहिता और मुस्लिम पर्सनल लॉ में सुधारों की मांग होती रही है, लेकिन धार्मिक संगठनों और राजनीतिक नेतृत्व में एकराय नहीं बन पाने के कारण ऐसा अब तक नहीं हो सका है|

जैसे –

शादी – हिंदू/सिख/ईसाई/बौद्ध/पारसी/जैन आदि धरमों में एक ही शादी इजाजत है, दूसरी शादी तभी हो सकते हैं जब पहली पत्नी/पति की मृत्यु या तलाक हो चुका हो | लेकिन मुस्लिमों में पुरुषों को चार-चार शादियां करने की इजाजत है जो कि समान नागरिकता संहिता आने पर बहुविवाह पर रोक लग जाएगी |

तलाक़ – हिंदू समेत कई धर्मों में तलाक को लेकर अलग-अलग नियम हैं| तलाक लेने के आधार अलग-अलग हैं| तलाक लेने के लिए हिंदुओं को 6 महीने तो ईसाइयों को दो साल तक अलग-अलग रहना पड़ता है. लेकिन मुस्लिमों में तलाक का अलग नियम है| समान नागरिकता संहिता आने पर ये सब खत्म हो जाएगा

किसी को गोद लेने का अधिकार – मुस्लिम पर्सनल लॉ महिलाओं को बच्चा गोद लेने से रोकते हैं, जिससे मुस्लिम महिलाएं बच्चा गोद नहीं ले सकतीं | लेकिन हिंदू महिला बच्चा गोद ले सकती है| समान नागरिकता संहिता आने से सभी महिलाओं को बच्चा गोद लेने का अधिकार मिल जाएगा |

संपत्ति का अधिकार – हिंदू लड़कियों को तो अपने माता-पिता की संपत्ति में बराबर का अधिकार है| लेकिन पारसी लड़की अगर दूसरे धर्म के पुरुष से शादी करती है तो उसे संपत्ति से बेदखल कर दिया जाता है| जो कि समान नागरिकता संहिता आने से सभी धर्मों में उत्तराधिकार और संपत्ति के बंटवारे से जुड़ा एक ही कानून होगा |

क्या किसी देश में इस प्रकार का कानून लागू है?

जी हां! भारत देश का गोवा एक ऐसा राज्य है जहां पर समान नागरिकता संहिता आजादी के पहले से ही लागू है, इस संहिता की जड़ें 1867 के पुर्तगाली नागरिक संहिता में मिलती हैं, जिसे पुर्तगालियों द्वारा लागू किया गया था और बाद में इसे वर्ष 1966 में नए संस्करण के साथ बदल दिया। गोवा में सभी धर्मों के लोगों के लिए विवाह, तलाक, विरासत आदि के संबंध में समान कानून हैं।

समान नागरिकता संहिता पर कोर्ट का क्या कहना है –

सुप्रीम कोर्ट ने भी समय समय पर केन्द्र सरकार से इस विषय पर सरकार की द्रष्टिकोण सुनिश्चित करने को कहा है, साथ ही एक मुस्लिम महिला के याचिका पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कानूनो से अलग संवैधानिक रूप से उसके हक में फैसला दिया, जिसके बाद इस पर बहुत जोर से बहस का विषय बन चुका है|

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *