गणित के नाम पर रहेगा पूरा सप्ताह

भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुज को‌ याद रखने के लिए सरकार ने एक नया और अनोखा तकनीकी तैयार किया है, इस वर्ष उनके जयंती के अवसर पर गणित सप्ताह के रूप में मनाया जाएगा, उनके असाधारण खोज और और उपलब्धियों के साथ साथ पूरे सप्ताह सिर्फ गणित से संबंधित क्रियाकलापों को दोहराया जाएगा

कौन थे श्रीनिवास रामानुजन

गणित के जादूगर कहलाने वाले महान् गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुज का जन्म बेहद ही गरीब परिवार में 22 दिसंबर सन् 1887 से तमिलनाडु के एक गांव इरोड में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ, लेकिन उनका बचपन सभी बच्चों के जैसे सामान्य नहीं था, वह बचपन से ही आस्तिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे, वह अपने कुल देवी नमक्कल देवी के बहुत बड़े भक्त थे, उनका यह मानना था कि यह वरदान देवी मां ने ही उनको दी हैं। वह जन्म से लेकर 3 साल तक कुछ बोल नहीं पाए। उनकी प्राथमिक शिक्षा तमिल भाषा से ही शुरू हुआ लेकिन शुरू में उनका पढ़ाई को लेकर उतना लगाव नहीं था, फिर कुछ समय बीतने के बात इन्होंने ही कक्षा 5वीं मे अपने जिले में टाप किये

उच्च शिक्षा के लिए रामानुज इरोड से कुम्भकोणम आ गये लेकिन यहा सभी कक्षाओं में सिर्फ गणित के ही प्रश्न हल करते थे कक्षा 11वीं वे गणित में इतना ज्यादा घुस गये कि वो गणित को छोड़ किसी भी विषय में पास नहीं हो पाए, जिस कारण उन्हें स्कूल भी छोड़ना पड़ा। कक्षा 12वीं उन्होंने प्रायवेट परीक्षा दिया लेकिन उसके बाद भी वह कक्षा 12वीं पास नहीं हो सके। हालांकि कक्षा 7वी में पढ़ते हुए भी उन्होंने ने बीए के प्रश्नों को हल कर दिया और गणित पर यही विषेश लगन के कारण 13 वर्ष से कम उम्र में ही त्रिकोणमिति समीकरण का हल निकाल लिए थे

परिवार में थी आर्थिक तंगी

श्रीनिवास रामानुजन की परिवार की आर्थिक माली स्थिति शुरू से ही अच्छी नहीं थी, उनके पिता जी कुम्भकोणम में एक कपड़े व्यापारी के यहां मुनीम का काम करते थे, और माता एक सामान्य ग्रहणी थी, रामानुजन में प्रतिभा तो बहुत थी लेकिन आर्थिक तंगी के कारण आगे बढ़ पाने में असमर्थ थे,उसी समय नौकरी की तलाश में वह बहुत से लोगों के सम्पर्क में आए और इत्तेफाक से वहां के डिप्टी कलेक्टर श्री वी रामास्वामी अय्यर से मिले, वह भी गणित के विद्वान थे, और रामानुजन के प्रतिभा को अच्छे से पहचाना । उन्होंने ने ही उनके लिए 25/- रूपये प्रति माह स्कालरशिप की व्यवस्था किए। उन्ही के मदद से श्रीनिवास रामानुजन ने अपनी पहली शोध पत्र “बरनौली संख्याओं के कुछ गुण” जनरल आफ इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी में प्रकाशित हुआ। इस शोध पत्र से उनको बहुत सारी प्रसिद्ध मिली,

इसी के चलते सन् 1912 मे मद्रास पोर्ट मे लिपिक की नौकरी मिल गई, लेकिन वह अपना शोध जारी रखा और सन् 1913 में GH Hardi को एक पत्र लिखा और साथ में अपने शोध-पत्र भी भेजें, एक सुबह हार्डी चाय के साथ सुबह बैठे थे तो हार्डी के सामने एक अंजान भारतीय द्वारा बहुत सारे प्रमेय और उसके उपपत्ति लिखे हुए थे, जो हार्डी ने पहले भी देखा हुआ था, पहली नज़र में उन्हें ये सब बकवास लगा, और एक किनारे रख दिया लेकिन इस पत्र की वजह से उनका मन बहुत ज्यादा आशान्त हो गया क्योंकि उसमें कुछ ऐसे भी प्रमेय थे जिसके बारे में न कभी सोचा था और न कभी सुना था, इन प्रमेयों को देखकर इन्हें लगा या तो ऐ रामानुज बहुत बड़ा धोखेबाज हैं या बहुत बड़ा गणितज्ञ, अब मन बेचैन था तो उन्होंने रात मे अपने एक शिष्य लिटिलवुड के साथ खोजना शुरू कर दिया और आधी रात तक इन्हें पता चल गया कि ये बहुत बड़े गणितज्ञ हैं और उनके प्रतिभा को सभी के सामने लाने का मन बना चुके थे, और इसके बाद हार्डी ने रामानुज को कैम्ब्रिज बुलाने का फैसला कर लिया

मद्रास से कैम्ब्रिज तक का सफर

रामानुज के लिए इरोड से कुम्भकोणम तक का सफर आसान था, वहां से मद्रास तक का सफर उनके जीवनोपार्जन के लिए रास्ता तैयार कर दिया, लेकिन मद्रास से कैम्ब्रिज तक का सफर रामानुज के लिए आसान नहीं था, उसमें सबसे बड़ी परेशानी थी उनकी माली हालत बहुत ही खराब थी। उनके पास टिकट तक के पैसे नहीं थे, पहली बार में उन्होंने ने हार्डी को कैम्ब्रिज आने से मना कर दिया था, और अपनी आर्थिक तंगी के बारे में भी बताए, हार्डी ने ही बाद में रामानुज के लिए टिकट और रहने का व्यवस्था करवाएं।

रामानुज ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे, लेकिन गणित के बहुत से गुर आते थे, लेकिन उन्हें गणित के शाखाओं के बारे में जानकारी नहीं थी, उन्होंने गणित में जो भी किया सब अपने बलबूते पर किया, प्रोफेसर हार्डी ने उन्हें पढ़ाने की ठान ली और वही कैम्ब्रिज में ही उनका दाखिला BSC मे करवा दिए। रामानुज का गणित में कोई सानी नहीं था । प्रोफेसर हार्डी खुद कहते हैं रामानुज को उन्होंने ने जितना सिखाया है उससे कहीं ज्यादा वह उनसे सीखे हैं, प्रोफेसर हार्डी की एक पुस्तक थी “सिनॉप्सिस आफ प्योर मैथेमेटिक्स” इस पुस्तक में बीजगणिज, ज्यामिति, त्रिकोणमिति और कलन गणित के 6165 सूत्र दिये गये थे, जो रामानुज ने उत्पत्ति के साथ दिए, डां हार्डी ने यह खुद माना की वह पुस्तक रामानुज से मिलने के बाद किसी भी काम की नहीं रही, क्योंकि उन्होंने उसके बाद इतनी सारी ख़ोज की कि वह सब उसके आगे शून्य साबित हुई

रामानुज के शोध

लैंडा-रामानुजन स्थिरांक, रामानुजन्-सोल्डनर स्थिरांक, रामानुजन् थीटा फलन, रॉजर्स-रामानुजन् तत्समक, रामानुजन अभाज्य, कृत्रिम थीटा फलन, रामानुजन योग जैसी प्रमेय का प्रतिपादन रामानुजन ने किया। इंग्लैंड जाने से पहले भी 1903 से 1914 के बीच रामानुजन ने गणित के 3,542 प्रमेय लिख चुके थे।

रामानुज के जीवन लीला

श्रीनिवास रामानुजन का जन्म सन् 1887 में हुआ, और उनकी मृत्यु 32 वर्ष में सन् 1920 में गंभीर बीमारी से हुआ, लेकिन अपने इस छोटे से जीवन में गणित जो दिया, वो आज तक किसी ने नहीं किया, उन्होंने मृत्यु शैय्या पर लेटे लेटे कई प्रमेय और उत्पत्ति दिए, रामानुज के दो बच्चे (एस. जिनकी रमन, और डब्ल्यू नारायण) भी थे लेकिन उन दोनों का भी अल्पायु में ही निधन हो गया

रामानुज के प्रमुख शोध

  • लैंडा-रामानुजन स्थिरांक
  • रामानुजन्-सोल्डनर स्थिरांक
  • रामानुजन् थीटा फलन
  • रॉजर्स-रामानुजन् तत्समक
  • रामानुजन अभाज्य,
  • कृत्रिम थीटा फलन,
  • रामानुजन योग
  • इस सभी के साथ गणित के क्षेत्र में लगभग 4000 प्रमेय और उत्पत्ति दिए

FAQ


रामानुजन की प्रसिद्ध खोज क्या है?

रामानुजन की थ्योरी क्या है?

रामानुजन ने कितने प्रमेयों की खोज की?

क्या रामानुजन भगवान में विश्वास करते थे?

रामानुज क्यों प्रसिद्ध है?

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