वीर बाल दिवस, भारत क्या है? और क्यों है, जानिए क्या है वीर बाल दिवस…..

भारत में कितने ही वीरों ने जन्म लिया और अपने देश के लिए अपने धर्म के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया, फिर चाहे हम बात करें महाराणा प्रताप जैसे देशभक्तों की जिन्होंने घांस-फूस की रोटियां खाकर देश के लिए लड़ते रहे लेकिन आत्मसम्मान पर आंच नहीं आने दिये, या चाहे हम बात करे महाराज शिवाजी महाराज की जिन्होंने अपने मातृभूमि के लिए लड़ते रहे और आज भी हमारे प्रेरणा के स्रोत रहें, आज एक ऐसे ही बालकों की बात करेंगे जिनको याद करके आज भी किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे, वो वीर बहादुर बालक कोई और नहीं सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह के वो पुत्र ही थे जो अपने धर्म के लिए अपने धर्म के लिए हंसते-हंसते जान न्यौछावर कर दिए लेकिन अपने धर्म को नहीं छोड़ा ।

कौन है वाल बीर

सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह के पुत्रों को सम्मान देने के लिए वाल बीर दिवस मनाया जाता है, गुरु गोविंद सिंह जी के चार पुत्र थे, अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह ये सभी खालसा पंत के लिए समर्पित थे, और आज के दिन (26 दिसंबर 1704) को साहिबजादे बाबा जोराबर सिंह उम्र 9 वर्ष और बाबा फतेह सिंह उम्र 7 वर्ष शहीद हुए थे। उस समय के मुगल सम्राट औरंगजेब कितना क्रूर और निर्दयी था इस बात से पता चलता है कि जब 1704 में उसके आदेश से मुगल सिपाहियों ने आनंद साहिब को घेर लिया तो उसमें गुरु गोविंद सिंह के दोनों पुत्रों को पकड़ लिया गया और मुस्लिम बनने पर जोर दिया गया, तरह-तरह की यातनाएं दी गई, लेकिन जब इन बच्चों के महान सिद्धांतों को हिला नहीं सका तो जिंदा ही दीवारों पर चुनवा दिया

क्यों जरूरी है वाल बीर दिवस

जहां आज भारतीय अपनी संस्कृति और सभ्यता को धीरे धीरे खोते जा रहे हैं, और पाश्चात्य सभ्यता का गुलाम होते जा रहे हैं, और पाश्चात्य सभ्यता में ऐसे ही लिपटते जा रहे हैं, और फूहड़ता के प्रचारक बनते जा रहे हैं, ऐसे में जरूरी है कि लोगों को अपने देश की सभ्यता और संस्कृति याद दिलाई जाए, इसलिए हमें उन्हें हमेशा याद रखना चाहिए जिनके बदौलत आज हमारे पास हमारी संस्कृति बची हुई है, इनमें से ही एक है साहिबजादे बाबा जोराबर सिंह और बाबा फतेह सिंह जिन्होंने अपने धर्म और संस्कृति के लिए शहादत को हंसते हंसते स्वीकार कर लिया लेकिन कभी अपने धर्म के साथ समझौता नहीं किया, और जिस उम्र में बच्चे अपने आपको नहीं जानते, उस उम्र में एक वो बच्चे ही थे जो अपनी मातृभूमि की शान के लिए बलिदान को स्वीकार कर लिए।

आज सभी स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में इन सभी वीर बालकों की वीरता के बारे में बताना चाहिए, जिससे आज के बच्चों में भी मातृभूमि – धर्म के बारे में प्रेरणा ले सकें

मुगलों को कैसे पता चला

भरोसा एक ऐसा शब्द है कब किसके पक्ष में हो जाए, उसका कोई भरोसा नहीं, ऐसा ही वाकया हुआ हमारे वीर बालकों के साथ, कहा जाता है, गुरु गोविंद सिंह अपने दो पुत्रों बाबा साहिबजादे अजीत सिंह और बाबा साहिबजादे जुझार सिंह के साथ आनंद साहिब छोड़ कर चले गए थे, लेकिन माता जीतो जी को एक विश्वश्त के साथ आंनद साहिब में ही रुके थे, लेकिन वह सोने के सिक्कों के लालच में आकर मुगलों को उस बात की सूचना दी दिया और फिर आकर मुगलों ने इस सभी लोगों को पकड़ लिया

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